अल्लाह पर यक़ीन कामिल हो तो कोई भी काम नामुमकिन नहीं

अल्लाह पर यक़ीन कामिल हो तो कोई भी काम नामुमकिन नहीं


हज़रत शैख सअदी رحمتہ اللہ علیہ बयान करते हैं कि एक गरीब शख्स के बच्चे के दांत निकलना शुरू हुए तो वो परेशान हो गया और सोचने लगा कि:
           "अब इसके दांत निकलना शुरू हो गए हैं कि कल ये मुझसे रोटी मांगेगा जबकि अपना हाल तो ये है कि मुश्किल से गुज़ारा होता है-"


उसने बच्चे के खाने पीने के मुताल्लिक़ सोचना शुरू कर दिया मगर उसे कुछ समझ ना आया-
उसने अपनी बीवी से इस मुआमले में मशवरा किया तो उसने निहायत पुरएतमाद लहजे में कहा कि:
              "तुम इसकी फिक्र क्यूं करते हो अगर तुम इसके खाने पीने के ज़िम्मेदार होगे तो तुम इसे मारोगे जिसने इसे दांत अता किए हैं वो यक़ीनन इसके खाने पीने का भी बंदोबस्त करेगा-"
क्या तुम जानते नहीं कि जब कोई शख्स गुलाम खरीदता है तो उसके खाने पीने का भी बंदोबस्त करता है क्या तुम अल्लाह पर इतना भरोसा भी नहीं रखते जितना कि एक गुलाम को अपने आक़ा पर होता है- अस्ल मसअला दिल का हवस से पाक होना है और जब इंसान के दिल को पाकीज़गी हासिल हो जाती है तो उसके नज़दीक मिट्टी और सोना दोनों बराबर हो जाते हैं अगर इंसान के दिल को ये पाकीज़गी हासिल ना हो तो उसका हाल आफरीदून जैसा होता है जो एक मुल्क का बादशाह होने के बावजूद मज़ीद मुमालिक पर क़ब्ज़ा करने की आरज़ू रखता है-

               *मक़सूदे बयान*

हज़रत शैख सअदी رحمتہ اللہ علیہ इस हिकायत में बयान करते हैं कि:
            "अगर इंसान का दिल हर तरह की दुनियावी ख्वाहिशात से पाक हो और उसका अल्लाह पर यक़ीन कामिल हो तो कोई भी काम उसके लिए नामुमकिन नहीं - अल्लाह कायनात का खालिक़ और मालिक है और तमाम मख्लूक़ का रिज़्क़ उसने अपने ज़िम्मे ले रखा है जब रिज़्क़ की ज़िम्मेदारी उसकी है तो फिर हम इस पर परेशानी में खुद को क्यूं मुब्तिला किए हुए हैं कि मैं फलां वक़्त क्या खाऊंगा- या फिर मेरा बच्चा क्या खाएगा- इसी सोच ने हमें मुख्तलिफ क़िस्म के वसवसों और फित्नों में मुब्तिला कर रखा है और इसी फिक्र में हम अल्लाह से गाफिल हो गए हैं..!!
(مجموعہ حکایات سعدی و رومی صفحہ نمبر25)

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