रमज़ान शरीफ़ का आखिरी जुम्अ और क़ज़ा नमाज़
*_किसी भाई ने एक सवाल किया था कि शबे क़द्र या रमज़ानुल मुबारक के आखिरी जुम्अ को 4 रकात नमाज़ पढ़ने से क्या, 700 साल की क़ज़ा नमाज़ अदा हो जाती हैं?_*
*_सबसे पहले उस MSG, की वज़ाहत कर दूं कि आजकल सोशल मीडिया पर एक meg, आ रहा है कि रमज़ानुल मुबारक के आखिरी जुम्अ को या शबे क़द्र को 4 रकाअत नमाज़ पढ़ लें और आपकी 700 साल की क़ज़ा नमाज़ अदा हो जायेगी,ये सिवाये जिहालत के कुछ नहीं है,ऐसा हरगिज़ नहीं है कि आप 4 रकाअत नमाज़ पढ़ लें और आपकी 700 साल की क़ज़ा नमाज़ अदा हो जाये,बल्कि हक़ीक़त ये है कि 4 रकाअत नमाज़ पढ़ने से आपकी 4 रकाअत नमाज़ ही होगी,वो भी तब जब कि आप किसी क़ज़ा नमाज़ को अदा करने की नियत से पढें,वरना ये भी नफ्ल होगी_*
*📕📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 4 सफह 708*
रमज़ान शरीफ़ का आखिरी जुम्अ और क़ज़ा नमाज़
*कुछ लोग इस गलत फहमी में मुब्तला हैं के रमज़ान के आखिरी जुमे को चंद रकअतें पढ़ने से पूरी उम्र की क़ज़ा नमाज़ें मुआफ़ हो जाती हैं। बाज़ जगहों पर तो इस का खास एहतेमाम भी किया जाता है कि मानो कोई बम्पर ऑफर आया हो।*
*एक मर्तबा मैंने (मुसन्नीफ) अपने मुहल्ले की मस्जिद में देखा के एक इश्तेहार लगा हुआ है जिसमें पूरी उम्र की क़ज़ा नमाज़ों को चुटकी में मुआफ़ करवाने का तरीका लिखा हुआ था और ताईद में चंद बे असल रिवायात भी लिखी हुई थी।*
*मेंने फौरन उस इश्तेहार को वहाँ से हटा दिया और उसके लगाने वाले के मुतल्लिक़ दरियाफ्त किया लेकिन कुछ मालूम न हो सका।*
*ऐसा ऑफर देखने के बाद वो लोग जिन की बीस तीस साल की नमाज़ें क़ज़ा हैं,अपने जज़्बात पर क़ाबू नहीं कर पाते,और असलियत जाने बग़ैर इस पर यकी़न कर लेते हैं।*
*इस तरह की बातें बिल्कुल गलत हैं और इन की कोई असल नहीं है, उलमा -ए- अहले सुन्नत ने इस का रद्द किया है और इसे नाजाइज़ क़रार दिया है।*
*मुजद्दिद ए दीन व मिल्लत इमाम-ए-अहले सुन्नत, सैय्यिदी सरकारे आला हज़रत रज़ियल्लाहु तआला अन्हु इस के मुतअल्लिक़ लिखते हैं कि ये जाहिलों की ईजाद और महज़ नाजाइज़ व बातिल है।*
*📕फतावा रज़विया शरीफ़ जिल्द,7 सफह 53*
*इमाम-ए-अहले सुन्नत एक दूसरे मकाम पर लिखते हैं के आखिरी जुम्अ में इस का पढ़ना इख़्तिरा किया गया है और इस में ये समझा जाता है कि इस नमाज़ से उम्र भर की अपनी और अपने माँ बाप की भी क़ज़ाएं उतर जाती हैं महज़ बातिल व बिदअत -ए- शईआ है, किसी मुअतबर किताब में इस का असलन निशान नहींं।*
*📕फतावा रज़विया शरीफ़ जिल्द,सफह 419/418*
*ख़लीफ़ा ए हुज़ूर आलाहज़रत, सदरुश्शरीया, हज़रत अल्लामा मुफ़्ती अमजद अली आज़मी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु लिखते हैं कि शबे क़द्र या रमज़ान के आखिरी जुमें को जो लोग ये क़ज़ा-ए-उमरी जमा'अत से पढ़ते हैं और ये समझते हैं कि उम्र भर की क़ज़ाएं इसी एक नमाज़ से अदा हो गयीं, ये बातिल महज़ है।*
*📕बहारे शरीअत जिल्द,1 सफह हिस्सा,4 सफह 708,कज़ा नमाज़ का बयान*
*हज़रत अल्लामा शरीफुल हक़ अमजदी अलैहिर्रहमह ने भी इस का रद्द किया है और इस कि ताईद में पेश की जाने वाली रिवायात को अल्लामा मुल्ला अली क़ारी हनफ़ी अलैहिर्रहमह के हवाले से मौज़ू क़रार दिया है।*
*📕फतावा अमजदिया जिल्द 1,सफह 272/273*
*अल्लामा क़ाज़ी शमशुद्दीन अहमद अलैहिर्रहमह लिखते हैं कि बाज़ लोग शबे क़द्र या आखिरी रमज़ान में जो नमाज़े क़ज़ा-ए-उमरी के नाम से पढ़ते हैं और ये समझते हैं कि उम्र भर की क़ज़ाओ के लिए ये काफी है,ये बिल्कुल ग़लत और बातिले महज़ है।*
*📕क़ानूने शरीअत सफह 241*
*हज़रत अल्लामा मुफ़्ती मुहम्मद वक़ारूद्दीन क़ादरी रज़वी अलैहिर्रहमह लिखते हैं कि बाज़ इलाक़ो में जो ये मशहूर है कि रमज़ान के आखिरी जुमें को चंद रकाअत नमाज़ क़ज़ा-ए-उमरी की निय्यत से पढ़ते हैं और ख़याल ये किया जाता है कि ये पूरी उम्र की क़ज़ा नमाज़ों के क़ाइम मुकाम है,ये गलत है,जितनी भी नमाज़े क़ज़ा हुई हैं उन को अलग अलग पढ़ना ज़रूरी है।*
*📕वक़ारुल फतावा जिल्द 2, सफह 134*
*हज़रत अल्लामा गुलाम रसूल सईदी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु लिखते हैं कि बाज़ अनपढ़ लोगों में मशहूर है कि रमज़ान के आखिरी जुम्अ को एक दिन की पांच नमाज़ें वित्र समेत पढ़ ली जाए तो सारी उम्र की क़ज़ा नमाज़ें अदा हो जाती हैं और इस को क़ज़ा -ए- उमरी कहते है, ये क़तअन बातिल है।*
*रमज़ान की खुसूसियत,फ़ज़ीलत और अज्र व सवाब की ज़्यादती एक अलग बात है लेकिन एक दिन की क़ज़ा नमाज़े पढ़ने से एक दिन की ही अदा होगी,सारी उम्र की अदा नही होगी।*
*📕शरह़ सही मुस्लिम शरीफ,जिल्द 2 सफह 352*
*इन तमाम रिवायातों से साबित हुआ के ऐसी कोई नमाज़ नहीं है जिसे पढ़ने से पूरी उम्र की क़ज़ा नमाज़ अदा हो जाये।*
*_ये जो चंद रकअत नमाज़ पढ़ी जाती है और ये समझा जाता है कि पूरी उम्र की क़ज़ा नमाज़ें अदा हो गईं, इसकी कोई असल नहीं है, ये नाजाइज़ ओ बातिल है।_*
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*🌹والله تعالیٰ اعلم بالصواب🌹*
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