मुहासबा करने और इस का जेह्न बनाने के तरीके

मुहासबा करने और इस का जेह्न बनाने के तरीके


*मुशाहदात से इब्रत हासिल कीजिये :* दिन भर हमारी नज़रों से कई मनाज़िर गुज़रते हैं, हम कई मुशाहदात करते हैं,अगर इन मुशाहदात से इब्रत हासिल करने का ज़ेह्न बन जाए तो मुहासबा करने में काफ़ी आसानी हो जाएगी।

■☞ मसलन कोई हादिसा देख कर येह सोचें कि खुदा न ख्वास्ता अगर हादिसा मेरे साथ पेश आ जाता तो मेरा क्या बनता ? क्या मैं ने कब्र में जाने की तय्यारी कर ली थी ? क्या मैं ने अपने आप को हिसाबो किताब के लिये तय्यार कर लिया था ? हज़रते सय्यिदुना सुफ्यान बिन उयैना رَضِیَ اللّٰهُ تَعَالٰی عَلَیْه अपनी गुफ्तगू में अक्सर एक शे'र से मिसाल दिया करते थे

■☞ *जिस का तर्जमा यूं है कि :* जब इन्सान गौरो फ़िक्र करता है तो उसे हर शै से इब्रत हासिल होती है।

(इह़याउल उ़लूम, 5/410)

मुहासबा करने और इस का जेह्न बनाने के तरीके


 ■☞ *मुहासबे की आदत बनाने के लिये मश्क कीजिये :* मश्क का मतलब है एक काम को बार बार करना और जब किसी काम को बार बार किया जाता है तो वोह करार पकड़ जाता है, उस पर इस्तिकामत नसीब हो जाती है 
कभी कभार अलाहदगी में आंखें बन्द कर के अपने रोज़ मर्रह के मा'मूलात के मुहासबे की यूं मश्क कीजिये भूले से या जान बूझ कर सादिर होने वाले गुनाहों को याद कीजिये कि कल सुबह से ले कर अब-तक जिस अन्दाज़ से मैं अपना वक़्त गुजार चुका हूं, क्या येह अन्दाज़ एक मुसलमान को जेब देता है ? *अपसोस !*

■☞ नमाजे फ़ज्र बा जमाअत अदा करने में सुस्ती की

■☞ रसूलुल्लाह صَلَّی اللّٰهُ تَعَالٰی عَلَیْهِ وَسَلَّم की सुन्नत दाढ़ी भी मुन्डाई

■☞ वालिदैन की बे अदबी की,उन के साथ बद तमीज़ी से पेश आया

■☞ दिन भर बद निगाही की

■☞ झूट,धोका देही और खियानत कर के माल कमाया

■☞ माल कमाने में इतना मसरूफ़ रहा कि दीगर नमाज़ों का भी खयाल न रहा

■☞ आवारा दोस्तों की मजलिस में बैठ कर : गीबत, चुगली, हसद, तकब्बुर, बद गुमानी जैसे बातिनी अमराज़ का शिकार हुवा

■☞ फ़िल्में ड्रामे,गाने बाजे भी सुने

■☞ अल गरज़ यूं सारा वक़्त अल्लाह عَزَّوَجَلَّ और उस के रसूल صَلَّی اللّٰهُ تَعَالٰی عَلَیْهِ وَسَلَّم की ना फ़रमानी में गुज़ार दिया।

■☞ *ऐ नादान !* तू कब तक इसी मन्हूस तर्जे ज़िन्दगी को अपनाए रखेगा ? क्या रोज़ाना यूंही तेरे नामए आ'माल में गुनाहों की तादाद बढ़ती रहेगी ? क्या तुझे नेकियों की बिल्कुल हाजत नहीं ? क्या तुझ में दोज़ख के शदीद तरीन अज़ाबात बरदाश्त करने की हिम्मत व ताकत है ?क्या तू जन्नत से महरूमी का दुख बरदाश्त कर पाएगा ?

■☞ *याद रख !* अगर अब भी तू ख्वाबे गफ़्लत से बेदार न हुवा तो अचानक मौत की सख़्तियां तुझे झन्झोड़ कर रख देंगी,लेकिन अफ़सोस !उस वक़्त बहुत देर हो चुकी होगी,पछताने के सिवा कुछ हासिल न होगा,लिहाज़ा अपनी इस कीमती ज़िन्दगी को गनीमत जानते हुए खुदाए अहकमुल हाकिमीन की इताअत और मोमिनीन पर रहूमो करम फ़रमाने वाले रसूले करीम रऊफुर्रहीम صَلَّی اللّٰهُ تَعَالٰی عَلَیْهِ وَسَلَّم की सुन्नतों की इत्तिबाअ में लग जा,तुझे दुन्या व आखिरत की भलाइयां नसीब होंगी।...✍🏻

    *दिल में हो याद तेरी गोशए तन्हाई हो..!*

       फिर तो खल्वत में अजब अन्जुमन आराई हो..!!

(नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात सफ़ह 65)

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