शरीयत का हुक़्म हमारी इस्लाह
•• किसी भी इस्लामिक महीने की खुश खबरी देने से जन्नत और दोज़ख का फैसला नहीं होता।
•• अल्हम्दुलिल्लाह सभी इस्लामिक महीने बा-बरकत व अज़ीम ही होते है। लेकिन जो ये बोलता है के ऐसा रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया के जो सबसे पहले इसकी खबर देगा उस पे जहन्नम हराम या जन्नत वाज़िब हो जाएगी। इस तरह की कोई बात हदीसे मुबारका में मौजूद नहीं है।
•• बल्कि ऐसे बे बुनियादी मैसेज भेजने वाला अल्लाह के रसूल पर झुठ बांध रहा है। और अपने आप को जहन्नम की तरफ धकेल रहा हैं। और जो शख्स हर सुनी सुनाई बात को आगे बढा देता है वो झुठा है और जहन्नम का हक़दार हैं।
क्या किसी महीनें की मुबारक़ बाद देने से जहन्नम हराम औऱ ज़न्नत वाज़िब हो जाती है ?
•• रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया : “मत झूट बाँधो मेरे ऊपर, जो कोई मुझ पे झूट बाँधेगा वो जहन्नम में जाएगा।..✍🏻
(सही बुखारी ,किताबुल इल्म हदीस नं 106)
•• रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया किसी शख्स के झुठा होने के लिए यही बात काफी है की वो हर सुनी सुनाई (बगैर तहक़ीक़ किये) बात को आगे बयांन करें।
(मुक़द्दमा सही मुस्लिम हदीस नं 9)
*⇩ याद रखने वाली बातें ⇩*
•• कोई भी खुश खबरी अल्लाह पाक ही दे सकता है। 10 लोगो को मैसेज सेंड करने से खुश खबरी नहीं मिलती।
•• प्यारे नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की क़सम दे कर मैसेज फॉरवर्ड करने को कहना हराम है। क्योंकि क़सम सिर्फ अल्लाह की खाई जा सकती है।
•• प्यारे नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम और बीबी फातिमा और बीबी जैनब (रदिअल्लहु अन्हुम) के ख्वाब में आने वाले मैसेज को फॉरवर्ड न करे।
•• कोई भी क़ुरआन की आयत या हदीस या किसी सहाबा का क़ौल तहक़ीक़ किये बग़ैर फॉरवर्ड न करे।.
1 Comments
Mashallah bahut khub
ReplyDeleteNiche Comment Box Me Aapki Raaye Likhe