पैन्ट और पाजामे कि मोरी चड़ाकर नमाज़ पढ़ना कैसा है |
कुछ लोग टखनो से नीचा लटका हुआ पाजामा और पैन्ट पहनते है अगर उन्होने इसकी आदत डाल रखी है और तकब्बुर व घमन्ड के तौर पर वह एेसा करते है तो यह नाजाइज़ व गुनाह है
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° अच्छी बाते अमल करो
° गेैर ज़रूरी जाहिलाना सवालात
° ग़ैर मुस्लिमो से गोश्त मँगाने का मसअला
और इस तरह नमाज़ मकरुह है
लेकिन अगर इत्तिफाक से हो या बेख्याली और बेतवज्जोही से हो तो हर्ज नही और जो लोग इससे बचने के लिए और टखने खोलने के लिए मोरी पायेचे को चढ़ाते है
वह गुनाह को घटाते नहीं बल्कि बढ़ाते है और नमाज़ में खराबी को कम नहीं करते बल्कि ज्यादा करते है यह पैन्ट और पाजामे की मोरी पायेचे को लपेटकर चढ़ाना नमाज़ में मकरूहे तहरीमी है
हदीस में है रसूलुल्लाह सल्लाहु तआला अलेहि वसल्लम ने फरामाया कि मुझे हुक्म दिया गया कि में सात हड़ियो पर सज्दा करूँ पेशानी दोनो हाथ दोनो घुटने और दोनो पंजे और यह हुक्म दिया गया कि में नमाज़ में कपड़े और बाल न समेटूँ
( बुखारी मुस्लिम मिश्कात सफा - 83 )
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इस हदीस की रोशनी में कपड़ा समेटना और चढ़ाना नमाज में मना है लिहाजा पैन्ट और पाजामे की मोरी लपेटने और चढ़ाने वालो को इस हदीस से इबरत हासिल करना चाहिए
लेकिन इस्लाह करने वालो से भी गुजारीश है की नमाज़ में इस किस्म की कोताहियाँ बरतने वालो को नरमी और प्यार मुहब्बत से समझाये मान जाये ठीक वरना उन्हे उनके हाल पर रहने दे और मुनसिब तरीके से इस्लाह करे उनको डाँटना झिड़कना और उनसे लड़ाई झगड़ा करना बहुत बुरा है ज़िसका नतीजा यह भी हो सकता है
की वह मस्ज़िद में आना और नमाज़ पढ़ना छोड़ दे ज़िसका वबाल उन झिड़कने वालो पर है क्यूकि इस में भी कोई श़क नहीं कि बाज इस किस्म कि खामिये के साथ नमाज़ पढने वाले बेनमजियो से हाजारो दर्जा बेहतर है और नमाज में कोताहियाँ करने वालो को चाहिए अगर कोई उनकी इस्लाह करे तो बुरा मानने को बजाय उसकी बात पर अमल करे
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इस पर गुस्सा न करे क्यूकि वह जो कुछ कह रहा
है आपकी भलाई के लिए कह रहा है अगर वह कुछ सख्ती से भी कह रहा है तो उसका
यह अमल
आपकी इसलाह ही है आपका काम तो हक को सूनकर अमल करना है झगड़ा करना नहीं है
अल्लाह हम सभी को अमल की तौफीक दे
आमीन
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