अल्लाह की नेयमतों की कदर करो

 
अल्लाह की नेयमतों की कदर करो


अल्लाह की नेयमतों की कदर करो


अल्लाह की तरफ से बेसुमार नेयमतों
से हमें नवाज़ा गया है.
अगर इन नेअमतों को गिनती करना चाहे तब भी गिन नहीं पाएगे.
आँख, हाथ, पैर, जुबां, कान वगैरह अल्लाह तआला की कितनी बड़ी नेअमतें है.

इसको समज़ना हो तो कभी पूरा एक दिन
अंधे, लूले-लंगड़े या गूंगे-बहरे बनकर गुजारिये.
या तो
एक पैर मोड़ कर बांध दे,
या तो एक हाथ कमरसे बांध दें,
या तो
आँख पर पट्टी बांध दें,
 या कान और मुँह बंध रखें और फिर नौकरी या धंधे पर जाए,

फिर देखए आप कितने मोहताज और मजबूर है.
कम से कम छुट्टी के दिन घरमें ही चंद घंटे आज़माइश करें,
फिर
आपको अल्लाह तआला की इन नेयमतों की बड़ी कद्र होगी.
 आप उसका दिल से शुक्र अदा करेंगे. जिस्मके तमाम आजा का बेहतरीन शुक्राना यह है के उन्हें हराम और
ना-जाएज़ कामो से बचाया जाए.

आज-कल हम आलमे इस्लाम पर एक नज़र डाले तो पता चलता है
 के आज दुनिया मे मुसलमानो की तआदात जितनी है उतनी इससे पहले कभी नहीं थी.

आज पूरी दुनिया मे मुसलमान के पास जितनी दौलत है इतनी आज से पहले कभी नहीं थी.
आज इस जहान मे जितनी इस्लामी हुकूमते है उतनी माज़िमे कभी नहीं थी.
 यह एक हकीकत होने के बावजूद इस सच्चाई को भी मानना पड़ेगा के आज मुसलमान जितना ज़लिलो-ख्वार है उतना पहले कभी नहीं था.
इसकी वजह कया है?

दीने इस्लाम ने तो मुसलमानो को दोनों आलम की इज़्ज़त और कामयाबी बख्शी है.
और हमने इस्लाम अपनाया है, गले लगाया है तो फिर ऐसा होने का सबब क्या है?

जब पैग़म्बरे इस्लाम ने अपने सहाबियों को छोड़ा था तब उनकी तअदात एक लाख चौबीस हज़ार की थी.

वोह लोग गरीब थे,
फाकाकशी करते थे,
शहेरा की तपती हुवी लू का सामना करते थे,
खैमोमे रहते थे,
ज़मीन पर चादर बिछाकर सोते थे,
ऊँटकी नकेल थामकर चलते थे.
लेकिन वोह ऐसा चलनेवाले थे के जब चले तो चलते गए, आगे बढ़ते ही गए पूरी दुनिया मे इस्लाम को फैला दिया

जब के आज हम उमदा लिबास पहनते है,
आलिशान मकानोमे रहते है,
लज़ीज़ ग़िज़ाए खाते है,
एर-कंडीशन गाडीयों मे घूमते है.

फिर भी हमारी ताकत नहीं है के सरहदो को क्रॉस कर सके. आखिर वोह क्या बात थी के रेगिस्तान
मे चादर बिछाकर सोने वाले अपने खैमो मे रहते थे
मगर उनका ख़्याल आते ही गैर अपने महल मे कांपते थे

जबकी आज हम पक्के मकानो मे रहते हुवे भी सूखे पत्तेकी तरह कांप रहे है.

दुनिया मे आज करोड़ो मुसलमानो मे सच बोलने वालो की कोई कमी नहीं है,
मगर कोई हजरत सिद्दीक़े अकबर रजिया अल्लाहु ताला अन्हु जैसा हो बताओ,
इन्साफ करने वालो की कमी नहीं मगर कोई हजरत उमरे फारूक़ रजिया अल्लाहु ताला अन्हु जैसा हो तो बताओ,

आज दुनिया मे मालदारों की कमी नहीं मगर कोई
हजरत उस्माने गनी रजिया अल्लाहु ताला अन्हु जैसा हो तो बताओ,
बहादुरो की कमी नहीं मगर कोई हजरत अली रजिया अल्लाहु ताला अन्हु जैसा हो तो बताओ,
आज़ान पढ़ने वालो की कमी नहीं,
मगर कोई हजरत बिलाल हबशी रजिया अल्लाहु ताला अन्हु जैसा हो तो बताओ। करोड़ो मिलकर एक गुलाम की तरह नहीं बन सके तो नबियो के ईमान की तरह कोई कैसे हो सकता है.

पहले इस्लाम को दिखाया जाता था,
आज हम इस्लाम को समज़ा रहे है.
पहले के लोगो की ज़िन्दगी मुकम्मल इस्लाम की तस्वीर थी,

आज सिर्फ नाम रह गया है.
किसी दवा या टॉनिक के फायदे बताने से शिफा नहीं मिलती बल्कि उसे  पीना पड़ता है.
इस्लाम को  पूरी तरह अपनाने के बाद ही हम कामियाब हो सकते है.
सर से पाऊ तक और दिल से दिमाग तक हमें सच्चा और पक्का  मुसलमान बनना  पड़ेगा

एक जंगल मे एक यहूदी अपनी बकरिया चरता था, अचानक एक भेड़ियेने बकरी पर हमला कर दिया,

यहूदी ने दौड़कर बकरी को बचा लिया,
तब भेड़िया इन्सान की ज़ुबान में कहने लगा के रबने
मुझे रिज़्क़ दिया था मगर तूने उसे छीन लिया.

भेड़िये को बोलते देख कर यहूदी को हैरत हुवी,भेड़िया कहने लगा के तुज़े हैरत है के मै इंसानी ज़ुबान बोल रहा हूँ?

मगर मुज़े इस बात पर हैरत है के इन पहाड़ो के बीच एक नबी जलवागर है जो गैब की खबरे देते है और तू उन पर अबतक ईमान नहीं लाया?

यह सुनते ही यहूदी नबी ﷺ को मिलने के लिए तैयार हो गया.
मगर उसने अपनी बकरियो की फ़िक्र की तो भेड़िया कहने लगा के जा तू नबी ﷺ को मिलकर आ,
तेरी बकरियो की हिफाज़त मै  करुगा.

यहूदी गया और प्यारे नबी  ﷺ से मिला और मुसलमान होकर लोटा, तो उसने देखा के भेड़िया बकरियो की हिफाज़त बराबर कर रहा है.

🌸हज़रत सफीना(र.अ) जंगलमे रास्ता भूल गए.
तब सामने शेर मिला तब आपने फरमाया के में नबी ﷺ का आज़ाद करदा गुलाम हूँ,

और रास्ता भूल गया हूँ.
शेर ने दुम हिला कर इशारा किया के तू नबी ﷺ का गुलाम है तो में तेरा गुलाम हूँ.

शेर आगे-आगे चला और आपको रास्ता दिखाया. इससे मालूम हुवा प्यारे नबी ﷺ के सच्चे गुलाम बन जाओ, सच्चे मुसलमान बन जाओ, तो तुम्हारी जान-मालकी हिफाज़त और तुम्हारे खादिम दरिंदे बन जायेंगे

अल्लाह अमल की तौफिक अता फरमाऐ आमीन 

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