ईमान और कुफ़्र

ईमान और कुफ़्र imaan Aur kufr

ईमान और कुफ़्र

हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि ईमान ये है कि तू इस बात की गवाही दे कि अल्लाह के सिवा कोई माअबूद नहीं और मुहम्मद सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम अल्लाह के रसूल हैं और ईमान ये है कि तू खुदाए तआला और उसके रसूलों उसके फ़रिश्तों उसकी किताबों और क़यामत के दिन और तक़दीर पर यक़ीन रखे
📕 मुस्लिम,जिल्द 1,सफह 438
यानि जो बात हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम से क़तई व यक़ीनी तौर पर साबित हो उसकी तस्दीक़ करना ईमान है और उनसे इनकार करना कुफ़्र है
📕 अशअतुल लमआत,जिल्द 1,सफह 38
📕 शरह फ़िक़्हे अकबर,सफह 86

📕 तफ़सीरे बैदावी,सफह 23
*अहले सुन्नत वल जमाअत के सही व मुस्तनद अक़ायद जानने के लिए हुज़ूर सदरुश्शरीया मौलाना अमजद अली आज़मी अलैहिर्रहमा की किताब बहारे शरीयत हिस्सा अव्वल का मुताला ज़रूर करें जो कि हिंदी उर्दू इंग्लिश हर ज़बान में मौजूद है,अक़ायद का पूरा मसायल एक लंबा और तवील मज़मून है जिसका यहां दर्ज कर पाना बहुत ही मुश्किल है मैं यहां कुछ मुख़्तसर ज़िक्र करता हूं*
* अल्लाह एक है उसका कोई शरीक नहीं ना ज़ात में ना सिफात में ना अफ़आल में ना अहकाम में और ना अस्मा में,ना उसका कोई बाप है और ना बेटा,वो अज़्ली व अब्दी है यानि जब कुछ ना था तो वो था और जब कुछ ना रहेगा तब भी वो होगा एक उसके सिवा सब कुछ हादिस है यानि फ़ना है
! वो सबसे बे परवाह है यानि किसी का मोहताज नहीं सारा जहान उसका मोहताज है
! वो हर ऐब से पाक है मसलन झूट,दग़ा,खयानत,ज़ुल्म,जहल,बेहयाई
! वो जिस्म जिस्मानियत से पाक है मसलन हयात,क़ुदरत,सुनना,देखना,कलाम,इल्म,इरादा सब उसकी सिफ़ात है मगर इसके लिए उसे ना तो जिस्म की ज़रूरत है ना रूह की ना कान की और ना आंख की
! वो ज़माना और मकान से पाक है,लिहाज़ा उल्मा इसी लिए ऊपर वाला कहने से मना फरमाते हैं
! हर भलाई और बुराई का पैदा करने वाला वही है मगर किसी गुनाह की निस्बत उसकी तरफ करना सख़्त हिमाक़त है बल्कि अपने नफ़्स की शरारत कहें
! उसके हर काम में कसीर हिकमतें होती हैं भले ही वो हमें अच्छी लगे या बुरी,लिहाज़ा क़ुदरत के किसी भी फेअल को हमेशा अपने लिए भला ही जानें

ईमान और कुफ़्र

* किसी भी अम्बिया की शान में अदना सी गुस्ताखी या बे अदबी करना कुफ़्र है
! तमाम अंबिया मासूम हैं यानि उनसे गुनाह का होना मुहाल यानि नामुमकिन है,और उनसे जो भी लग्ज़िशें हुई उनका ज़िक्र सिवाये क़ुरान की तिलावत या हदीस की रिवायत के अलावा हराम हराम और सख्त हराम है
! नुबूव्वत विलायत की तरह कसबी नहीं कि कोई भी अमल के ज़रिये नुबूव्वत हासिल कर ले,लिहाज़ा जो ऐसा जाने काफिर है
! कोई वली कितने ही बड़े मर्तबे का हो हरगिज़ किसी भी नबी की बराबरी नहीं कर सकता सो जो अपने आपको किसी नबी से बराबरी का दावा करे काफिर है
! अम्बिया की तादाद मुतअय्यन करना जायज नहीं कि इस मसले पर इख़्तिलाफ़ बहुत हैं लिहाज़ा जो भी तादाद बतायी जाए मसलन 124000 या 224000 तो वो कमो-बेश के साथ कही जाए
! हुज़ूर खातेमुन नबीयीन हैं जो उनके बाद किसी को नुबूव्वत का मिलना जाने काफिर है
! हुज़ूर को जिस्म ज़ाहिरी के साथ मेराज हुई,जो मस्जिदे हराम से मस्जिदे अक्सा तक के सफर का इन्कार करे काफिर है और आगे का मुनकिर गुमराह
! हुज़ूर को हर किस्म की शफाअत हासिल है जो इन्कार करे गुमराह है
! हुज़ूर मालिको मुख्तार हैं जो इन्कार करे काफिरो गुमराह है
* फ़रिश्ते भी मासूम होते हैं इनके अलावा तमाम औलिया व अब्दाल गुनाह से महफूज़ होते हैं मासूम नहीं
! किसी भी फ़रिश्ते की तनकीस कुफ्र है मसलन अपने किसी दुश्मन को देखकर ये कहना कि मलकुल मौत आ गया करीब कल्मये कुफ्र है
* तमाम आसमानी किताबों पर ईमान लाना ज़रूरी है,मगर हुक्म अब सिर्फ क़ुरान का ही चलेगा
! जो कुरान को ना मुक़म्मल जाने काफिर है
! क़ुरान की आयतों से मज़ाक करना भी कुफ्र है मसलन दाढ़ी मुंडा कल्ला सौफा पेश करे या भूखा कहे कि मेरा पेट क़ुल हुवल्लाह पढ़ता है
* ये अक़ीदा रखना कि मरने के बाद रूह किसी और जिस्म में या जानवर में चली गयी है कुफ्र है
! हश्र रूह और जिस्म दोनों का होगा जो ये कहे कि अज़ाब या हिसाब सिर्फ रूह का होगा जिस्म का नहीं काफिर है
* अज़ाबे क़ब्र,हश्र,जन्नत,दोज़ख सब हक़ हैं
* यूंही आमाले दीन मसलन किसी से नमाज़ पढ़ने को कहा और उसने जवाब दिया कि बहुत पढ़ ली कुछ नहीं होता काफिर हो गया
! रमज़ान के रोज़े रखने को कहा और जवाब दिया कि रोज़ा वो रखे जिसके घर खाने को ना हो काफिर हो गया
! यूंही एक हल्की सुन्नत मसलन नाख़ून काटने को कहा तो जवाब दिया कि नहीं काटता अगर चे सुन्नत ही क्यों ना हो काफिर हो गया
! यूंही किसी आलिम की तौहीन इसलिये की ये आलिमे दीन है कुफ्र है
! यूंही ग़ैर मुस्लिमो के त्यौहार मसलन होली,दीवाली,राम-लीला,जन-माष्ट्मी, क्रिसमस के मेलों में शामिल होकर शानो शौकत बढ़ाना भी कुफ्र है
! यूंही किसी बदमज़हब फिरके को पसंद करना या मज़ाक में ही अपने आपको उन बातिल फिरकों का बताना कुफ़्र है
! जिस तरह किसी मुसलमान को काफ़िर कहना कुफ़्र है उसी तरह किसी कफ़िर को मुसलमान कहना भी कुफ़्र ही है,याद रखें कि वहाबी देवबन्दी क़ादियानी खारजी राफजी अहले हदीस जमाते इसलामी और जितने भी 72 बद-मज़हब फ़िरके हैं सब काफ़िरो मुर्तद हैं
📕 बहारे शरीयत,हिस्सा 1,सफह 1----79
📕 अनवारुल हदीस,सफह 90-91

📕 अहकामे शरीयत,हिस्सा 2,सफह 163
*बस इतना समझ लीजिये कि बग़ैर इल्म के ईमान बचा पाना नामुमकिन है इसलिए इल्मे दीन हासिल करें*
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