शबे मेअराज का बयान

Shab-e-Meraj


शबे मेअराज


*फुक़्हा* - रायज यही है कि हुज़ूर ﷺ को मेअराज शरीफ रजब की 27वीं शब में हिजरत से पहले मक्का मुअज़्ज़मा में हज़रते उम्मे हानी के घर से हुई

📕 ज़रक़ानी,जिल्द 1,सफह 355

*फुक़्हा* - हुज़ूर ﷺ को 34 बार मेअराज हुई 33 बार रूहानी यानि ख्वाब में और 1 बार जिस्मानी यानि जागते हुए

📕 मदारेजुन नुबूवत,जिल्द 1,सफह 288

*ⓩ हुज़ूर ﷺ को रात ही रात एक आन में मस्जिदें हराम से मस्जिदे अक्सा
ले जाया गया फिर वहां से सातों आसमानों की सैर कराई गयी फिर सिदरह से आगे 50000 हिजाबात तय कराये गए जन्नत व दोज़ख दिखाई गयी 
और सबसे बढ़कर खुदा का दीदार हुआ,

मगर जैसा कि मुनकेरीन की आदत है हर बात का इंकार करने की तो इस पर भी ऐतराज़ किया जाता है कि हुज़ूर ﷺ को मेराज जिस्म के साथ हुई ही नहीं बल्कि ख्वाब में ऐसा हुआ,

उनका कहना है कि ऐसा हो ही नहीं सकता कि कोई 27 साल का सफर एक पल में कर आये,तो इसका जवाब ये है कि अगर खुदा की कुदरत का इक़रार अक़्ल के हिसाब से ही किया जाए तब तो ये भी नहीं हो सकता,

ग़ौर करें कि मस्जिदें हराम यानि काबा मुअज़्ज़मा से बैतुल मुक़द्दस का सफर करने में 1 महीने से ज़्यादा लग जाते थे जिसकी दूरी 666 मील है*

1 मील = 1.60934 किलोमीटर
666 मील = 1.60934 = 1071 किलोमीटर
फिर इतना जाना और वापस आना यानि
1071 + 1071 = 2142 किलोमीटर

*ⓩ अब ये बताइए कि 2142 किलोमीटर का सफर अगर हुज़ूर ﷺ तेज़ घोड़े से भी करते तो एक घोड़ा अगर बहुत ते़ज दौड़े तो उसकी स्पीड 70 किलोमीटर पर घंटे की होगी,
इस हिसाब से*

2142 / 70 = 30.6

*ⓩ और अगर ऊंट से सफर करते तब,ऊंट की रफ़्तार तो घोड़े से कम ही होती है,

मतलब ये कि 30 घंटे से भी ज़्यादा वक़्त लगता आपको आने और जाने में,
तो अगर अक़्ल के हिसाब से ही मानना है तो मस्जिदें हराम से मस्जिदे अक़्सा के सफर का भी इनकार करो क्योंकि अगर एक ही 
रात में हुज़ूर ﷺ आसमानों की सैर नहीं कर सकते जन्नत दोजख नहीं देख सकते खुदा का दीदार नहीं कर सकते तो फिर एक ही रात में काबा से मस्जिदे अक्सा भी नहीं पहुंच सकते,

अगर वो नामुमकिन है तो ये भी नामुमकिन है,मगर ऐसा तो कर ही नहीं पाओगे क्योंकि ये नामुमकिन काम उस रात मुमकिन हुआ है,
अगर इंकार करोगे तो काफिर हो जाओगे रब तआला क़ुर्आन में इरशाद फरमाता है कि*

*कंज़ुल ईमान* - पाक है वो ज़ात जो ले गया अपने बन्दे को रात ही रात मस्जिदें हराम से मस्जिदे अक्सा

📕 पारा 15,सूरह असरा,आयत 1

*ⓩ अक़्ल से फैसला करने वालो तुम्हारी अक़्ल के परखच्चे उड़ जायेंगे,अगर एक महीने का सफर एक आन में हो सकता है बल्कि हुआ है क़ुर्आन शाहिद है 
तो फिर 27 साल का सफर भी एक आन में हो सकता है अगर ये मुमकिन है तो वो भी मुमकिन है,

इसके अलावा तीन और दलील है कि हुज़ूर ﷺ को मेअराज हुई और जिस्म के साथ हुई*

*1* अल्लाह इस आयत में फरमाता है कि अपने बन्दे को ले गया,तो बन्दा किसको कहते हैं इस पर इमाम राज़ी अलैहिर्रहमा फरमाते हैं कि

*फुक़्हा* - अब्द का इतलाक़ रूह और जिस्म दोनों पर होता है

📕 मफातीहुल ग़ैब,जिल्द 20,सफह 295

*ⓩ और इसकी सराहत खुद क़ुर्आन मुक़द्दस में मौजूद है,मौला फरमाता है कि*

* क्या तुमने नहीं देखा जिसने मेरे बन्दे को नमाज़ से रोका

📕 पारा 30,सूरह अलक़,आयत 9

*और ये कि जब अल्लाह का बंदा उसकी बंदगी करने को खड़ा हुआ तो क़रीब था कि वो जिन्न उस पर ठठ्ठा की ठट्ठा हो जायें

📕 पारा 27,सूरह जिन्न,आयत 19

*ⓩ बताइये नमाज़ रूह पढ़ती है या जिस्म या कि दोनों,ज़ाहिर सी बात है की दोनों,तो मेराज में भी हुज़ूर ﷺ का जिस्म और रूह दोनों मौजूद थी*

*2* सारी दुनिया जानती है कि मेअराज में हुज़ूर ﷺ के लिए बुर्राक़ लाया गया,अगर मेअराज रूह की थी तो बुर्राक़ का क्या काम,क्या बुर्राक़ रूह को उठाने के लिए लाया गया था

*3* अगर हुज़ूर ﷺ को मेअराज ख्वाब में होती तो मुनकिर इन्कार क्यों करता,क्योंकि ख्वाब में आसमान की सैर करना कोई कमाल तो नहीं,मतलब ये कि मेअराज जिस्म के साथ ही हुई थी

📕 रुहुल बयान,पारा 15,सफह 8

*हुज़ूर ﷺ ने खुदा का दीदार किया*

* आंख ना किसी तरफ फिरी और ना हद से बढ़ी

📕 पारा 27,सूरह नज्म,आयत 17

*ⓩ मतलब ये कि शबे मेअराज हुज़ूर ﷺ ने अपने रब को अपने सर की आंखों से देखा,

उसी देखने को मौला तआला फरमाता है कि ना तो देखने में ही आंख फेरी और ना ही बेहोश हुए जैसा कि हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम रब के जलवों की ताब ना ला सके और बेहोश हो गए,
और इस देखने की तफसील खुद हुज़ूर ﷺ इस तरह इरशाद फरमाते हैं कि*

*हदीस* - इज़्ज़त वाला जब्बार यहां तक क़रीब हुआ कि 2 कमानों या उससे भी कम फासला रह गया

📕 बुखारी,जिल्द 2,सफह 1120

*फुक़्हा* - चारों खुल्फा यानि हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ हज़रत उमर फारूक़ हज़रत उस्मान गनी हज़रत मौला अली व अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास अब्दुल्लाह बिन हारिश अबि बिन कअब अबू ज़र गफ्फारी मआज़ बिन जबल अब्दुल्लाह इब्ने मसऊद अबू हुरैरह 
अनस बिन मालिक और भी बहुत से सहाबा का यही मज़हब है कि हुज़ूर ﷺ ने अपने सर की आंखों से रब तआला को देखा

📕 शिफा शरीफ,जिल्द 1,सफह 119

*फुक़्हा* - हुज़ूर ﷺ के मेअराज जिस्मानी के ताल्लुक़ से बुखारी व मुस्लिम व अबु दाऊद व इब्ने माजा व शिफ़ा शरीफ वगैरह में इन जलीलुल क़द्र सहाबये किराम से हदीसे पाक मरवी है,

जिनमे हज़रत अबु बक्र सिद्दीक़ 
हज़रत उमर फारूक़ 
हज़रत उस्मान गनी हज़रत मौला अली हज़रत अबी बिन कअब 
हज़रत ओसामा बिन ज़ैद 
हज़रत अनस बिन मालिक 
हज़रत बिलाल बिन हिमामा 
हज़रत बिलाल बिन सअद 
हज़रत जाबिर बिन अब्दुल्लाह 
हज़रत हुज़ैफा बिन इहान 
हज़रत समरह बिन जुन्दब 
हज़रत सहल बिन सअद 
हज़रत शद्दाद बिन रूसी 
हज़रत हबीब बिन सनान 
हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास 
हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर 
हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमरू 
हज़रत अब्दुल्लाह बिन ज़ुबैर 
हज़रत अब्दुल्लाह बिन ऊफी 
हज़रत अब्दुल्लाह बिन सअद 
हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद 
हज़रत अब्दुर्रहमान बिन आबिस 
हज़रत अब्बास बिन अब्दुल मुत्तलिब 
हज़रत मालिक बिन समद 
हज़रत अबुल हमरा 
हज़रत अबु अय्यूब अंसारी 
हज़रत अबु हुरैरह 
हज़रत अबु दर्दा 
हज़रत अबुज़र गफ्फारी 
हज़रत अबु सईद खुदरी 
हज़रत अबु सुफियान 
हज़रत अस्मा बिन्त अबि बक्र 
हज़रत उम्मे हानी 
हज़रत उम्मे कुलसुम बिन्त हुज़ूर ﷺ उम्मुल मोमेनीन 
हज़रत आईशा सिद्दीक़ा उम्मुल मोमेनीन 
हज़रत उम्मे सलमा रिज़वानुल्लाहि तआला अलैहिम अजमईन

📕 रुहुल बयान,पारा 27,सफह 168


*फुक़्हा* - इसके अलावा भी दीगर फुक़्हा
व अइम्मा का यही मज़हब रहा कि हुज़ूर ﷺ ने खुदा का दीदार किया

📕 अलमुस्तदरक,जिल्द 1,सफह 65
📕 फत्हुल बारी,जिल्द 7,सफह 174
📕 खसाइसे कुबरा,जिल्द 1,सफह 161
📕 ज़रक़ानी,जिल्द 6,सफह 118

*ⓩ अब जो लोग ये ऐतराज़ करते हैं कि हुज़ूर ﷺ ने खुदा को नहीं देखा बल्कि जिब्रीले अमीन को देखा तो तो मैं उनसे कहना चाहूंगा कि क्या मेरे आक़ा जिब्रील को देखने के लिए सिदरह तशरीफ ले गए थे,

अरे जो खुद 24000 मर्तबा मेरे आक़ा की बारगाह में आये हों उन्हें देखना हुज़ूर ﷺ के लिए कोई कमाल नहीं,बल्कि वो तो हुज़ूर के ही गुलाम हैं खुद हुज़ूर ﷺ फरमाते हैं कि*

*हदीस* - मेरे दो वज़ीर आसमान में हैं जिब्राईल और मीकाईल

📕 तिर्मिज़ी,जिल्द 2,सफह 208

*ⓩ वज़ीर किसके होते हैं ज़ाहिर सी बात है कि बादशाह के होते हैं,अगर हुज़ूर ﷺ फरमाते हैं कि ये दोनों मेरे वज़ीर हैं तो मतलब बादशाह आप खुद हुए,

तो हुज़ूर ﷺ के लिए ये कोई कमाल की बात नहीं कि जिब्रील को देख लिया बल्कि कमाल यही है कि खुदा को देखा,

फिर मोअतरिज़ का उम्मुल मोमेनीन सय्यदना आयशा सिद्दीक़ा रज़ियल्लाहु तआला अन्हा का ये क़ौल पेश करना कि "जो ये कहे कि हुज़ूर ﷺ ने खुदा को देखा तो वो झूठा है" ये क़ौल आपके इज्तेहाद पर था मगर यहां आपके इज्तेहाद से बड़ा हुज़ूर ﷺ का क़ौल मौजूद है कि खुद आप फरमाते हैं*

*हदीस* - मैंने अपने रब को अहसन सूरत में देखा

📕 मिश्कात,सफह 69

*और मुनकिर का क़ुर्आन की ये दलील लाना कि खुदा को कोई आंख नहीं देख सकती तो 
इसका जवाब ये है कि इस दुनिया में खुदा को कोई आंख नहीं देख सकती वरना हदीसो से साबित है हुज़ूर ﷺ फरमाते हैं कि*

*हदीस* - कल तुम अपने रब को बे हिजाब देखोगे

📕 बुखारी,किताबुत तौहीद,हदीस 7443
📕 इब्ने माजा,हदीस 185

*ⓩ तो जब मैदाने महशर में तमाम मुसलमान खुदा का दीदार करेंगे तो हुज़ूर के लिए क्या मुश्किल रही,

तो अब कहने वाला कह सकता है कि वो दुनिया दूसरी होगी जहां खुदा का दीदार होगा तो मोअतरिज़ का ऐतराज़ यहीं से खत्म हो गया और सवाल का जवाब खुद बा खुद मिल गया कि जहां हुज़ूर ﷺ ने खुदा का दीदार किया था वो दुनिया भी दूसरी दुनिया थी ये दुनिया नहीं थी,

एक आखिरी बात ये कि जब भी कोई किसी को अपने यहां दावत पर बुलाए और मेहमान के सामने मेज़बान खुद ना आये तो इसे तौहीन समझा जाता है,

उसी तरह ये बात खुदा की शान के बईद है कि वो खुद ही हुज़ूर ﷺ को बुलाये उनके लिए जन्नत सजाये जहन्नम को बुझा दे हूरो मलक का मेला लगा ले और खुद ही उनके सामने ना आये और अपना दीदार ना कराये ये ना मानने वाली बात है*